Environment India Commentary
व्यंजन द्वादशी ५०० वर्ष पुराना - परोपकार, खाद्य सुरक्षा और सन्तुलित आहार को सम्बोधित करता पर्व
भारतीय संस्कृति की विशालता को दर्शाता हुआ व्यंजन द्वादशी पर्व पुरी, ओड़िशा में अभी कुछ सप्ताह पुर्व ही सम्पूर्ण हुआ है, पर जानकार और बिद्धिजीवियों के बीच यह अभी भी एक सोचने का विषय बना हुआ है कि कैसे एक ५०० वर्ष पुराना त्यौहार आज समाज, खाद्य सुरक्षा और सन्तुलित आहार का सूचक बन चुका है।
व्यंजन द्वादशी पर ७०१ प्रकार के पकवान बनाये जाते हैं। यह त्यौहार वैष्णवों द्वारा मार्गशीर्ष के शुक्लपक्ष की द्वादशी को मनाया जाता है। जैसा कि नाम से ही पता चलता है इस दिन कई प्रकार के व्यंजन भगवान को चढ़ाए जाते हैं और फिर प्रसाद स्वरूप लोगों को खिलाया जाता है।
मान्यता के अनुसार महाभार युद्ध के पश्चात जब श्रीकृष्ण अपने घर गए तो माता यशोदा को लगा कि वे बहुत कमजोर हो गए हैं और युद्ध में असुरों से लड़ने के दौरान वे अच्छे से भोजन नहीं कर पाए। इस कारण मातृप्रेम में उन्होंने श्रीकृष्ण के लिए ढेर सारे पकवान बनाये। आज से ५०० वर्ष पूर्व भारत के महान विचारक चैतन्य महाप्रभु ने इसी प्रथा को बढ़ाते हुए पुरी के वैष्णव मठों में इसकी पुनःस्थापना की। समय के साथ साथ यह पर्व पूरे भारत मे फैल गया। पकवानों को बनाने के लिए भक्तजन स्वयम ही दान करते हैं जिसमे मौसमी फल, शाक-सब्जी, अनाज व दुग्ध पदार्थों का दान किया जाता है। भोजन बनाते समय स्वच्छता का भी बहुत ध्यान दिया जाता है।
इतने अनेक प्रकार के खाद्यपदार्थों का भण्डारा शायद ही किसी जगह होता हो जितना इस पर्व के दौरान होता है, यह लोगों को भोजन कराने के साथ-साथ भोजन में विविधता को बढ़ाने का भी संदेश देता है, इस दिन कितने ही लोग मंदिरों में ऊँच नीच भूल कर, साफ सुथरा होकर एक साथ भोजन करते हैं। व्यंजन द्वादशी निश्चित रूप से हमारी विविधता में एकता को दर्शाने वाला एक और पर्व है जिसका प्रोत्साहन होना चाहिए।
पश्चिमी घाट से संरक्षण की पुकार
मालाबार की ग्रे धनेश(Malabar Grey Hornbill) पश्चिमी घाट की स्थानिक प्रजाति है जो अपने आप मे इसके संरक्षण की ओर इशारा करती है। स्टेट ऑफ इंडियाज़ बर्ड्स रिपोर्ट २०२० के अनुसार भी धनेश की यह प्रजाति अभी बहुत बड़े संकट से जूझ रही है।
धनेश पक्षी(जो कि एक कीस्टोन प्रजाति है) की आबादी पश्चिमी घाट पर बहुत तेजी से घट रही है। रिपोर्टों के अनुसार इस प्रजाति में एक लंबे पैमाने पर ६६.८% की गिरावट आई है। यह प्रजाति अभी अनेक संकटों से जूझ रही है जैसे वनों का क्षरण, बड़े वृक्षों की आबादी में कमी होना, आदि। बताते चलें कि १० जनवरी २०२० में आई० यू० सी० एन० ने इस प्रजाति को पहले से ही कम चिंताजनक (लीस्ट कंसर्न) से कमजोर (वल्नरेबल) में डाल दिया है जो कि दर्शाता है कि इस प्रजाति पर कितना बड़ा संकट आ गया है।
मालाबार की ग्रे धनेश एक कीस्टोन प्रजाति है जिनका प्राकृतिक जंगलों को बढ़ाने में बहुत बड़ा योगदान है। संरक्षणवादियों का मानना है कि ग्रे धनेश का संरक्षण बहुत ही ज्यादा जरूरी है क्योंकि यह पक्षी जंगली बीजों को फैला कर जंगलो को बढ़ाने में मदद करता है जिससे न सिर्फ वन्यजीवियों को सहारा मिलता है बल्कि यह मानव और पशुओं के बीच मे होने वाले संघर्ष को भी कम करता है। इस प्रजाति को बचाना बहुत ही ज्यादा जरूरी है क्योंकि अगर इन्हें कुछ हो गया तो पश्चिमी घाट के जंगलों पर बहुत बड़ा संकट आ जायेगा।
रेलगाड़ी से टकराने के कारण नैनीताल में हुई हाथी की मृत्यु: उत्तराखण्ड
नैनीताल के लालकुआँ इलाके में एक हाथी रेलगाड़ी से टकरा कर मर गया, रेलगाड़ी से टकराने पर वह १किलोमीटर तक घसीटता हुआ गया जिस कारण उसी समय उसकी मृत्यु हो गयी। राज्य में ४ दिनों के अन्दर-अन्दर अब तक ३ हाथियों की मृत्यु हो चुकी है
रेलगाड़ी से ना जाने कितने ही जँगली जानवर आये दिन मारे जाते हैं और इनकी खबरें भी रोज ही आती हैं, पर लोगों तक पहुँच ही नहीं पाती, यह भी एक विडम्बना ही है कि जिस राष्ट्र में प्रकृति के कण कण को पूजने का प्रचलन वहीं पर प्रकृतिक्षरन को अनदेखा किया जा रहा है।
कर्नाटक के राजस्व और वन विभाग में ६२ एकड़ जंगल के टुकड़े के लिए बहस
कर्नाटक राजस्व विभाग ने त्याविहल्ली में ६२ एकड़ जँगल की जमीन को घास के मैदान में बदलने का फैसला किया है।
इस फैसले को लेकर कर्नाटक के वन विभाग और राजस्व विभाग में अभी मतभेद चल रहा है क्योंकि, दोनो ही उसे अपने अधिकार की भूमि बता रहे हैं।
राजस्व विभाग ने यह फैसला स्थानीय लोगों के कहने पर लिया है तो वहीं वन विभाग का कहना है कि उस जगह उनके द्वारा बहुत से संरक्षण में कार्य किये गए हैं तो उसे घास के मैदान में बदलना उचित नहीं है।
इस लड़ाई में दो बातें साफ साफ दिखाई दे रहीं हैं अगर कोई देखना चाहे तो: पहला हमे घास के मैदानों को बंजर भूमि कहना बन्द करना होगा, क्योंकि घास के मैदान भी प्रकृति में उतनी ही महत्वता रखते हैं जितनी एक जंगल की होती है इसलिए घास के मैदानों को जबरदस्ती जंगलों में तब्दील करने से अच्छा सरकारों को वास्तव में जो बंजर और खाली भूमि है वहाँ पर जंगल बनाना चाहिए।
दूसरा जंगलों की आप चाहे कितनी भी परिभाषा बदल लो उनकी हालत में सुधार तभी आएगा जब वास्तव में सोच विचार कर इस पर कार्य किया जाएगा क्योंकि उपरोक्त बहस का एक कारण हाल ही में सरकार द्वारा जंगलों की परिभाषा बदलना भी है।
अब आप भी करें केंद्र सरकार के साथ व्यवसाय
केंद्र सरकार के निजी व्यवसाय को बढ़ावा देने के रुझान के चलते कई मंत्रालयों ने व्यवसाय में साझेदारी करने के लिए प्रस्तावों को स्वीकार करने के लिए खुद को खोल दिया है, जिसमे कृषि मंत्रालय भी शामिल है।
केंद्र सरकार अब आपकी साझेदार बन सकती है अगर आपके पास कृषि, जलवायु परिवर्तन, ग्रामीण विकास, शिक्षा और यहाँ तक कि स्वास्थ्य देखभाल वितरण के लिए डिजिटल समाधान के प्रस्ताव हैं । नीचे👇 दिए लिंक पर जाकर आप अपना प्रस्ताव मंत्रालय को भेज सकते हैं।
उपरोक्त टिप्पड़ियाँ नीचे दिए गए समाचारों के आधार पर हैं 👇
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